Madhu Arora

Add To collaction

धीरे-धीरे पड़ी मैंने जिंदगी की किताब

पढ़ी मैंने जिंदगी की किताब

धीरे-धीरे पढी मैंने जिंदगी की किताब
हर रोज का एहसास अलग उसका तो जनाब
सोचा नहीं जाना नहीं आज तक उसका हिसाब
हर मिनट पर देखा मैंने उसका अजब कमाल

धीरे-धीरे पढी मैंने जिंदगी की किताब।
सभी दे वह किताब कुछ सीख का एहसास
कभी उलझा दे झंझट में उस का कमाल
धीरे-धीरे पढ रही हूं जिंदगी की किताब

धीरे-धीरे पढी मैंने जिंदगी की किताब
दिया उसने बहुत कुछ मधुर सा प्यार
कभी दुख भरा लगा मुझे यह सारा संसार
कौन कहता है जानता हूं भविष्य सारा
उलझा देखो मैं भी आज पहेली है बेहिसाब।।

                  रचनाकार ✍️
                  मधु अरोरा
               24.7.२०२२
# प्रतियोगिता हेतु 
     

   22
11 Comments

Madhumita

25-Jul-2022 06:29 PM

बहुत ही सुन्दर

Reply

नंदिता राय

25-Jul-2022 04:34 PM

शानदार प्रस्तुति 👌

Reply

Shnaya

25-Jul-2022 03:41 PM

शानदार प्रस्तुति 👌

Reply